"सफर जिंदगी का"-POEM BY- SHIVANKIT TIWARI "Shiva"
अजीबोगरीब था सफर मेरा,
शुरुआत मे मैने कोई शुरुआत ही न की,
निकला जब घर से अनजान था मैं,
रास्ते में भी किसी से मुलाकात ही न की,
दिल मे जुनून था,उबलता मेरा खून था ।
तपिश थी,लगन थी सफर में सुकून था ।
न साथी कोई,न सहारा कोई था ।
किसी ने किया न इशारा कोई था ।
मैं आगे बढ़ा और बढ़ता गया मैं,
सफर के सफर में सफर कर गया मैं ।
सफर जिन्दगी का सुहाना सफर है,
सभी ने सफर से सफर ही किया है,
मैने भी इस सफर के सफर को समझ के
जिन्दगी के सफर को किया शुक्रिया है।।
-शिवांकित तिवारी "शिवा"
युवा कवि एवं लेखक
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