शिमला जाने से पहले जानें ये 5 बातें, मेरा रियल एक्सपीरियंस

 



भोपाल स्टेशन पर जब हम सभी ट्रेन के आने का इंतजार कर रहे थे, मुझे साफ़-साफ़ याद है उससे पहले मैंने किसी के चेहरे पर वो उत्साह, वो रोमांच नहीं देखा था क्यों कि डेढ़ साल से कॉलेज में हमें इतना मनमौजी होने का मौका ही नहीं मिला। कई मौके आये भी होंगे पर शिमला और चंडीगढ़ घूमना, वो भी दोस्तों के साथ;मेरे लिए ये पहला अनुभव था। इस सफ़र में हम द्वितीय एवं तृतीय वर्ष के विद्यार्थियों के अभिभावक के रूप में साधना मैडम और शालिनी मैडम का सानिध्य प्राप्त था।
    शाम को मालवा एक्सप्रेस के साथ ही हमारा सफ़र भी शुरू हो गया, दिसंबर भी शुरू हो गया था इसलिए ठंड के कारण, रात के सफर में ट्रेन के बाहर का नज़ारा तो नहीं बता सकता मग़र जब आप के साथ कॉलेजी दोस्त हों तो कहीं भी नज़ारा बन सकता है। कभी अंत्याक्षरी तो कभी एक दूसरे की खिल्ली उड़ाते हुए हम मज़े में थे। लगभग रात के 11 बजे के बाद एक के बाद एक सभी दोस्तों पर नींद हावी होने लगी।
सुबह 5 बजे दिल्ली में हमारे सीनियर अक्षित भैया और मनीषा दीदी मिलने आये थे, तब वही अनुभव हुआ जैसे कि अपने बड़े भैया और दीदी बीच सफ़र में मिलने आये हों।
सुबह चाय की चुस्की के साथ ही हम सब अम्बाला जंक्शन पहुँच गए। वहाँ हमारे टूर गाइड मंडल जी मौजूद थे और आगे की व्यवस्था उन्हें ही सौंपी गई थी। अम्बाला से चंडीगढ़ हम बस से पहुँचे, इसी बीच नाश्ते का भी इंतजाम था। चंडीगढ़ में हमारे लिए जिस होटल में ठहरने की व्यवस्था की गई थी उसका नाम था - 'रॉयल रिसोर्ट'। वहाँ की व्यवस्था नाम के मुताबिक ही कही जा सकती है। हम जल्दी जल्दी स्नान आदि कर्म कर के भोजन के लिये एकत्रित हुए और सभी ने साथ में भोजन किया। अगर वहाँ के भोजन की बात करें तो आज के दौर के सभी होटलों में जो व्यंजन उपलब्ध रहते हैं मेरे ख़याल से सारे व्यंजन उपलब्ध रहे होंगे। जैसे कि हम चंडीगढ़ में थे तो वहाँ के भोजन में कोई ख़ास तौर पर पंजाबी या हरयाणवी महक तो नहीं थी पर व्यवस्था उत्कृष्ठ थी।यहाँ एक बात विचार योग्य है कि पश्चिमी सभ्यता के अतिप्रभाव से देश की क्षेत्रीय विविधता लुप्त होती जा रही है। ये विविधता सिर्फ़ गाँव तक सीमित रह गयी है क्योंकि वहाँ इसको पहुँचने में अभी समय लगेगा।

भोजन उपरांत हम चंडीगढ़ स्थित शीश महल देखने पहुँचे,यह काफ़ी सुंदर था, वहाँ की ऐतिहासिक विशेषता जानने का समय नही मिल पाया क्यों कि चंडीगढ़ का प्रसिद्ध रॉक गार्डन देखने जाना था। रॉक गार्डन जहाँ विभिन्न प्रकार के पत्थरों द्वारा, पत्थर के छोटे-छोटे टुकड़ों द्वारा जो कला प्रस्तुत की गई है, यह कला का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कहा जा सकता है। क्योंकि यहाँ पत्थरों के अपशिष्ठ, चूड़ियों एवं टाइल्स के टुकड़ों से जो आकृतियाँ निर्मित की गई हैं वह अद्भुत है। वहाँ हमने साथ में फ़ोटो भी खिंचवाई। रॉक गार्डन से बाहर आने तक शाम हो चुकी थी। फिर हम वहाँ के मार्केट में पहुँचे, लोगों ने कुछ खरीददारी भी की। वहाँ जो मैं गौर कर पाया, लोगों की पोशाक में पंजाबी और भाषा में हरयाणवी और पंजाबी का मिश्रित रूप देखने को मिला।
पुरुष ऊंचे कद के हट्टे कट्टे सरदार दिख रहे थे और महिलाओं में भी मध्यभारत की महिलाओं की अपेक्षा ज़्यादा तेजी थी।
रात में होटल में डीजे पर सभी ने जी भर के धूम मचाई, जो कॉलेजी स्टूडेंट्स के लिए सबसे मज़ेदार होता है। रात्रि के भोजन के पश्चात हम सो गए क्योंकि अगले दिन सुबह ही शिमला के लिए निकलना था।

सुबह 8 बजे ही हम तैयार होकर शिमला के लिए रवाना हो गए। जैसे जैसे हम शिमला के करीब पहुँच रहे थे दो चीजें सभी को बहुत आकर्षित कर रहीं थीं एक क्रमशः बढ़ती शीतलता और दूसरी बर्फ़ से ढकी सफेद खूबसूरत वादियाँ। शिमला में हम कोटी रिसोर्ट में ठहरे थे। वहाँ दिन के समय भी तापमान काफ़ी कम था। अभी दिसंबर शुरू ही हो रहा था यदि जनवरी का महीना होता तो बर्फ़बारी के आनंद का भी योग बनता।



शाम को हम शिमला की खूबसूरत मॉल रोड घूमने पहुँचे। जो दृश्य हमने अभी तक फिल्मों में ही देखे थे वो प्रत्यक्ष देखना वास्तव में मज़ेदार था। रात 8 बजे के करीब वहाँ तापमान लगभग 2 डिग्री था और बहुत तेजी से नीचे गिर रहा था। ऐसे में एक चीज मुझे आश्चर्यजनक लगी कि वहाँ के लोग हमसे कम कपड़े में भी हमसे कम ठंड महसूस कर रहे थे, शायद वो उस ठंड के अभ्यस्त हो चुके थे। वहाँ के मार्केट में शाल एवं गर्म कपड़े आदि अपनी अलग विशेषता समेटे हुए थे। वहाँ सड़कछाप कुत्ते भी उतने झलरीदार एवं बालों से सम्पन्न थे जितने की अपने भोपाल में अमीरों के कुत्ते होते हैं।
वहाँ बहुत ठंड लग रही थी।



अगली सुबह कोटी रिसोर्ट से हिमांचल की वादियों का जो दृश्य सामने था वह आज भी मन में उसी तरह अंकित है। सुबह नाश्ते के बाद हम सब कुफ़्री के लिए निकल पड़े। कुफ़्री के लिए जो हमने मन में धारणा बना रखी थी वह अंततः मिथ्या साबित हुई। सब सोचे थे कि वहाँ मनाली की तरह बर्फ़ ही बर्फ़ होगी। वहाँ हम उस आनंद से तो वंचित रहे परंतु कुफ़्री से जो मनमोहक दृश्य दिखे वो अपने आप में विशेष अनुभूति वाले थे। कई लोगों ने कई एडवेंचर भी किये। वहाँ घोड़े पर से पहाड़ी तक पहुंचना शानदार अनुभव रहा। कुफ़्री से लौटकर हमने दोपहर का भोजन किया।

शामके भोजन के बाद कैम्प फायर काफ़ी यादगार रहा, सभी एकसाथ बैठे, किसी ने गीत गुनगुनाया, तो किसी ने शाइरी सुनाई। मैम लोगों ने भी अपने अनुभव बताए। इस सफ़र में अपने ही कई साथियों से ख़ास तौर पर राब्ता हुआ जो कि रोज की कॉलेज लाइफ में संभव नहीं हो पाता। कई सीनियर्स से पहली बार मुलाक़ात हुई। कहते हैं कि किसी को समझना हो तो उसके साथ किसी सफ़र पर निकल जाओ, इसीलिए "ज्यादातर प्रेमकहानियाँ सफर से ही शुरू होती हैं।"



अगली सुबह शिमला से विदा होने का समय आ गया, हम लोग श्री जाको हनुमानजी के दर्शन कर पुनः चंडीगढ़ के लिए चल दिये।वहाँ के बस चालकों की अभ्यस्तता की दाद मैं इसलिए देना चाहता हूँ क्योंकि पहाड़ों पर घुमावदार रास्तों पर इतनी कुशलता से वाहन चला पाना मैदानी भाग वालों के लिए अचरज ही है। शाम को चंडीगढ़ के उसी होटल में आहार के बाद हम लोग वापस अम्बाला जंक्शन पहुँचे। भोपाल के लिए ट्रैन रात में थी। छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में रातभर तो सोते हुए तो ठीक ही था पर ट्रेन में दिन भर काटना थोड़ा उबाऊ होता है, वो भी जब आप सफ़र से लौट रहे हों। ख़ैर निद्रा हावी रही तो ये समस्या भी नहीं हुई।

इस पूरी यात्रा में कई व्यवस्थाओं की जिम्मेदारी हमारे सीनियर्स को दी गयी थी, उन्होंने जिम्मेदारी संभाली तभी यात्रा आनन्द के साथ सम्पन्न हुई। इस पूरे सफ़र में कई बार हम लोगों से गलतियाँ भी हुईं। कभी अनजाने में, कभी जानबूझ कर भी। जानबूझ कर इसलिए क्योंकि हम सभी कॉलेजी स्टूडेंट्स थे। पर इन सभी बातों के ऊपर एक बात जो मैं यहाँ ज़िक्र करना बेहद महत्वपूर्ण समझता हूँ कि जैसे एक माँ अपने बच्चे की गलती पर उसे डांट देती है और डांटने के बाद यदि बच्चे को अपनी गलती का आभास हो जाये तो माँ भी स्वतः भावुक हो जाती है। वात्सल्य का यह रूप मुझे साधना मैडम में स्पष्ट रूप से दिखा। यह अवचेतन में स्थित हो जाने वाली घटना थी।

साधारण तौर पर अन्य यात्राओं में वापसी के दिन अपने घर की याद आना स्वाभाविक है, पर इस सफ़र में यही मनोभाव था कि कुछदिन और मिल जाते तो बेहतर होता। आखिर शाम के साथ ही हम सब भी भोपाल पहुँच गए। स्टेशन से अपनी अपनी सुविधानुसार सभी अपने अपने घर पहुँच गए।
यह सफ़र मेरे जीवन के शानदार अनुभवों में शुमार रहेगा, क्योंकि ये कुछ चंद दिन सुखद तो थे ही, साथ ही इनमें जीवन था; रोज की घिसी-पिटी ज़िन्दगी से ऊपर उठकर एक नई ऊर्जा के सृजन, नवोन्मेष की क्षमता थी, जो निश्चित ही हमारे जीवन को नई दिशा प्रदान करेगी।...तो इस सफ़र को यहीं विराम देते हैं ताकि एक नया सफ़र शुरू हो सके।

इति!
-अमन मिश्र



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